समझने के लिए लहजे

समझने के लिए लहजे बहुत हैं जुबान से क्या कहूँ किस्से बहुत हैंहवा के साथ मैं जाऊँ कहाँ तक मेरे होने के भी चर्चे बहुत हैंनहीं जो आँधियों से खौफ खाते चिरागों की तरह जलते बहुत हैं

और जानेसमझने के लिए लहजे

खल साहित्यिकों का छलवृत्तांत

अपने गिरोह के मुट्ठी भर खल साहित्यिकों के साथ मिल बैठ कर खड़ा किया उन्होंने किसी कद्दावर कवि के नाम पर एक ‘सम्मान’ और वे सम्मान-पुरस्कर्ता बन कर तन गए इस तिकड़म में महज कुछ सौ रुपयों में अपने लिए पूर्व में खरीदे गए दिवंगत साहित्यकारों के नाम के कुछ क्षुद्र सम्मानों का नजीर उनके काम आया

और जानेखल साहित्यिकों का छलवृत्तांत

कबीर और नागार्जुन की रचनाओं में व्यंग्य

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कबीर और नागार्जुन दोनों हिंदी के उन विरले कवियों में से हैं जिन्होंने अपने रचनाशीलता के विविध आयाम द्वारा सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, शोषण पर जबरदस्त प्रहार किया है। समतामूलक समाज की स्थापना तथा व्यंग्य की तीखी मार जैसी समानता के गुणों के कारण ही कबीर और नागार्जुन के अध्ययन को एक साथ प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव के अनुसार–‘हिंदी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पहले आलोचक हैं, जिन्होंने कबीर के मर्म को ठीक-ठीक समझा और कबीर के भीतर से ही एक नये कबीर की खोज की। कहें कि उन्होंने कबीर का अपना एक नया पाठ निर्मित किया।’

और जानेकबीर और नागार्जुन की रचनाओं में व्यंग्य

खुशियों की सौदागिरी

लेकिन अचानक की मेरी मसखरी मुझे भारी पड़ी। मेधा ज्यादा गुस्से या ज्यादा तिलमिलाहट से हुमस कर रो पड़ी। मैं अकबकाया सा उसे मनाने बढ़ा तो उसने झटक दिया। मैंने दुबारा सॉरी कहा और कबर्ड से अपना वॉलेट निकाल उसकी तरफ डालते हुए कहा–आज से इसे तुम्हीं रखो–तुम इसकी मालकिन–खुश? ‘वह रोते-रोते वॉलेट फेंक कर चीखी–‘मुझे खाली वॉलेट्स रखने का शौक नहीं’– –‘अब तुम्हारे लिए चोरी के नोटों से भरा बटुआ तो मैं लाने से रहा’– ‘तुम्हारा मतलब, निलय बख्शी और विशाल घाटे चोर हैं...एक तुम्हीं जमाने में।’

और जानेखुशियों की सौदागिरी

अगर मैं खोया बहुत कुछ तो

अगर मैं खोया बहुत कुछ तो बहुत पाया भी कभी-कभी तो मिला मूल का सवाया भीडुबो गया जो बचाने के बहाने मुझको बहादुरी का उसी ने ख़िताब पाया भीज़मीर बेचकर कश्कोल1 का सौदा न किया इसी फ़कीरी ने ख़ुद्दार यूँ बनाया भी

और जानेअगर मैं खोया बहुत कुछ तो

यादों के सफर में मलेशिया ड्रीमलैंड

जेटिंग में हमारा दो दिन रुकने का प्रोग्राम था, क्योंकि मैं यहाँ की स्वर्णिम स्मृतियों को अपने मानस पटल पर भलीभाँति सँजो लेना चाहती थी, शाम के समय हम दो ग्रुपों में विभाजित होकर टहलने निकले क्योंकि वहाँ की भव्यता देखकर हमें अंदाजा हो गया था कि इस प्रकार हम सभी अपनी-अपनी रुचियों के अनुसार घूम सकते हैं। वह हमारी कल्पनाओं से भी अधिक बड़ा तथा भव्य था। यहाँ आने पर जितनी मुझे खुशी हो रही थी उतना ही मेरा भावुक मन कुछ सोचने को विवश था।

और जानेयादों के सफर में मलेशिया ड्रीमलैंड