खुशियों की सौदागिरी
लेकिन अचानक की मेरी मसखरी मुझे भारी पड़ी। मेधा ज्यादा गुस्से या ज्यादा तिलमिलाहट से हुमस कर रो पड़ी। मैं अकबकाया सा उसे मनाने बढ़ा तो उसने झटक दिया। मैंने दुबारा सॉरी कहा और कबर्ड से अपना वॉलेट निकाल उसकी तरफ डालते हुए कहा–आज से इसे तुम्हीं रखो–तुम इसकी मालकिन–खुश? ‘वह रोते-रोते वॉलेट फेंक कर चीखी–‘मुझे खाली वॉलेट्स रखने का शौक नहीं’– –‘अब तुम्हारे लिए चोरी के नोटों से भरा बटुआ तो मैं लाने से रहा’– ‘तुम्हारा मतलब, निलय बख्शी और विशाल घाटे चोर हैं...एक तुम्हीं जमाने में।’