मोह से दंशित समर्पण के प्रबल

मोह से दंशित समर्पण के प्रबल प्रतिवाद से पाप अपना धो रही सत्ता महज उन्माद सेतोड़कर सारी हदें जो प्रश्न संसद में उठे देखकर पथरा गईं आँखें मुखर संवाद सेमूल्य बदले जा रहे हैं आपसी संबंध के प्यार के बल से प्रलोभन जातिगत अनुवाद से

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दूर सितारों के झुरमुट में परियाँ

दूर सितारों के झुरमुट में परियाँ हैं माँ कहती थीं उन्हें नहाने को सोने की नदियाँ हैं माँ कहती थींबच्चों को जन्नत की सैर करा देती हैं लम्हों में उनके हाथों में जादू की छड़ियाँ हैं माँ कहती थींइस दुनिया का हुस्नो-जवानी ढल ही जाना है एक दिन हम मिट्टी की चलती-फिरती गुड़ियाँ हैं माँ कहती थीं

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मैं जानता था

घर जिसने किसी गैर का आबाद किया है शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया हैजग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार मैं जानता था उसने ही बरबाद किया हैतू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता जो खुश करे वो आईना ईजाद किया है

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मैं और मेरा समय

अपने विषय में सोचता हूँ तो पाता हूँ कि मेरा जन्म जगराँव (पंजाब) में हुआ। जगराँव या पंजाब से मेरा इतना ही नाता है कि मैं वहाँ पैदा हुआ और अपने जीवन के पहले नौ वर्ष पंजाब के अलग अलग उन शहरों में बिताए–जहाँ जहाँ, मेरे पिता का तबादला होता रहा।

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तेजेंद्र शर्मा का सृजन-संसार

कथाकार तेजेंद्र शर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व इतना सम्मोहक है कि हम उनसे दूर रहना भी चाहें, तो वे हमारी ओर बाँहें पसार मुक्तकंठ गा उठते हैं–‘जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है/यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा है!’ कथाकार तेजेंद्र शर्मा के सृजन-संसार को ‘नई धारा’ का सलाम!

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राखी की चुनौती

बहिन आज फूली समाती न मन में तड़ित् आज फूली समाती न घन में, घटा है न फूली समाती गगन में लता आज फूली समाती न वन में।

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