बादल राग
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन-घोर राग अमर, अंबर में भर निज रोर!झर-झर निर्झर, गिरि, सर में घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में सरित, तड़ित गति, चकित पवन में मन में, विजन गहन, कानन में आनन-फानन में, रव घोर कठोर– राग-अमर, अंबर में भर निज रोर!
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन-घोर राग अमर, अंबर में भर निज रोर!झर-झर निर्झर, गिरि, सर में घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में सरित, तड़ित गति, चकित पवन में मन में, विजन गहन, कानन में आनन-फानन में, रव घोर कठोर– राग-अमर, अंबर में भर निज रोर!
कहानी एक गरीब लड़के के आत्मवृत्त के रूप में है, जिसमें वह कहता है : ‘आजकल तो मैं ही घर में कमाने वाला हूँ। दिन के समय लड़कों के साथ कोसी में मछलियाँ मारता हूँ। शाम होते ही किसी की फुलवारी में घुसकर कुछ फल और सब्जी का जुगाड़ करता हूँ। इसी से घर चलता है। उस दिन भूखन साहू के यहाँ एक बैलगाड़ी खड़ी थी। उसमें चावल के बोरे लदे थे। अपने साथियों के साथ मिलकर हमने एक पूरा बोरा उड़ा लिया और गाड़ीवान को खबर तक न हुई।
अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी सैकड़ों जनसभाओं में उन्हें बेशुमार ढंग से भाषण करते हुए लोगों ने सुना था। कई बार ऐसे भी वाकिये हुए हैं, जब उन्हें उन्नाव और लखनऊ की चुनाव सभाओं में सिर्फ मंच पर बैठे हुए लोग ही सुन रहे होते थे, पर मुद्रा जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे अपनी चिरपरिचित मुद्राओं के साथ जनजागरण अभियान में लगे रहे।
मोह से दंशित समर्पण के प्रबल प्रतिवाद से पाप अपना धो रही सत्ता महज उन्माद सेतोड़कर सारी हदें जो प्रश्न संसद में उठे देखकर पथरा गईं आँखें मुखर संवाद सेमूल्य बदले जा रहे हैं आपसी संबंध के प्यार के बल से प्रलोभन जातिगत अनुवाद से
दूर सितारों के झुरमुट में परियाँ हैं माँ कहती थीं उन्हें नहाने को सोने की नदियाँ हैं माँ कहती थींबच्चों को जन्नत की सैर करा देती हैं लम्हों में उनके हाथों में जादू की छड़ियाँ हैं माँ कहती थींइस दुनिया का हुस्नो-जवानी ढल ही जाना है एक दिन हम मिट्टी की चलती-फिरती गुड़ियाँ हैं माँ कहती थीं
घर जिसने किसी गैर का आबाद किया है शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया हैजग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार मैं जानता था उसने ही बरबाद किया हैतू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता जो खुश करे वो आईना ईजाद किया है