दीवार में रास्ता

‘छोटी जान आजमगढ़ आ रही हैं।’ मोहसिन को महसूस हुआ कि अब दीवार में रास्ता बनाना संभव हो सकता है। भावज ने पोपले मुँह से पूछ ही लिया, ‘अरे कब आ रही है? क्या अकेली आ रही है या जमाई राजा भी साथ में होंगे? सलमान मियाँ को देखे तो एक जमाना हो गया है।...वैसे, मरी ने आने के लिये चुना भी तो रमजान का महीना!’ भावज की आँखों के कोर भीग गए।

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जो तुम ना मानो मुझे अपना

तेजेंद्र शर्मा पर कुछ न लिखने का मलाल उन्हें बहुत दिनों तक सालता रहा और जब मौका मिला तो उन्होंने उसे जाया भी नहीं किया। अपने हिंदी साहित्य के इतिहास के तीसरे खंड में अपनी सारी भड़ास निकालते हुए तेजेंद्र शर्मा पर न केवल लिखा बल्कि जम कर लिखा। ऐसे तेजस्वी तेजेंद्र जी से अचानक एक कार्यक्रम में मुलाकात हो जाने को मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ।

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तो लिखा जाता है

दिल में जब दर्द जगा हो, तो लिखा जाता है घाव सीने पे लगा हो, तो लिखा जाता हैखुशी के दौर में लब गुनगुना ही लेते हैं गम-ए-फुरकत में भी गाओ, तो लिखा जाता हैहाल-ए-दिल खोल के रखना, तो बहुत आसाँ है हाल-ए-दिल दिल में छुपा हो, तो लिखा जाता है

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मेरी मजबूर सी यादों को

ये जो तुम मुझको मुहब्बत में सजा देते हो मेरी खामोश वफाओं का सिला देते होमेरे जीने की जो तुम मुझको दुआ देते हो फासले लहरों के साहिल से बढ़ा देते होअपनी मगरूर निगाहों की झपक कर पलकें मेरी नाचीज सी हस्ती को मिटा देते हो

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दिल से संसद तक तेजेंद्र ही तेजेंद्र

तेजेंद्र शर्मा–यह नाम मस्तिष्क में आते ही मानो हलचल सी होने लगती है। उसकी याद के साथ साथ उससे मिलने की बेचैनी मन में बढ़ने लगती है। उसकी सुंदर, गहरे बेधने वाली आँखें और होंठों की भोली मुस्कान नटखट कान्हा की तर्ज पर ही बनी है। द्वापर के उस महानायक से यह हमारा नायक कुछ मिलता जुलता सा लगता है। याद नहीं कब से उसे जानता हूँ, लगता है कई युग बीत गए हैं।

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