आलोचकों की नज़र में तेजेंद्र शर्मा
तेजेंद्र शर्मा शब्दों का इस्तेमाल कहानी को विकसित करने में स्प्रिंगबोर्ड की तरह करते हैं। इससे कहानी में स्मार्टनेस पैदा होती है और पाठक की रुचि बनी रहती है।
तेजेंद्र शर्मा शब्दों का इस्तेमाल कहानी को विकसित करने में स्प्रिंगबोर्ड की तरह करते हैं। इससे कहानी में स्मार्टनेस पैदा होती है और पाठक की रुचि बनी रहती है।
तेजेंद्र शर्मा अपनी कहानियों में अपने समय के परिवेश को पूरी गहनता और सघनता से व्यक्त करते है। उनकी कहानियों में फैले परिवेश का विस्तार देशी और विदेशी पृष्ठभूमि पर आधारित है। अपनी कहानियों में तेजेंद्र शर्मा उस परिवेश को उद्घाटित करते हैं जो हमारी चेतना को बहुत गहरे जाकर उद्वेलित और प्रभावित करता है।
घिर आए घनश्याम गगन में भर आए मेरे लोचन हैं? अंतरिक्ष में बिखरे सहसाकिसके ये काले कुंतल हैं? नभ की सरिता में उग आए
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
बड़ी उम्मीद पर मैंने कदम अंगार पर डाले, बड़ी उम्मीद पर मैं पी गया हँस कर ज़हर-प्याले, दिशाएँ मोड़ लूँगा, मैं नयी दुनिया बना लूँगा
कमरे में दाईं ओर पुस्तकों से भरी एक आलमारी रखी हुई थी। दरवाजे के ठीक सामने एक दरी पर हिंदी की पच्चीसों पत्रिकाएँ और कुछ मराठी, अँग्रेजी तथा फ्रेंच पत्र-पत्रिकाओं के मई के अंक बिखरे पड़े थे।