मधु-वितरण
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
बड़ी उम्मीद पर मैंने कदम अंगार पर डाले, बड़ी उम्मीद पर मैं पी गया हँस कर ज़हर-प्याले, दिशाएँ मोड़ लूँगा, मैं नयी दुनिया बना लूँगा
कमरे में दाईं ओर पुस्तकों से भरी एक आलमारी रखी हुई थी। दरवाजे के ठीक सामने एक दरी पर हिंदी की पच्चीसों पत्रिकाएँ और कुछ मराठी, अँग्रेजी तथा फ्रेंच पत्र-पत्रिकाओं के मई के अंक बिखरे पड़े थे।
लाभडाल को तो मैंने अपनी आँखों के सामने बसते देखा”–बूढ़े लाला ने सफेद भौंहों के पीछे गहराई में छिपी दोनों आँखों को मेरी ओर गड़ाते हुए कहा।
लो, नभ-मंदिर के कंचन-पट खोल, सुंदरी ऊषा आती अरुणांजलियों से प्रकाश की किरणों का अमृत बरसाती वनतरुओं के नीड़ों में है जाग पड़ा मंगल कल-कूजन नव रसाल-मंजरियों का है
फिर मेरे मामा जी से बोले–रामवृक्ष की शादी तो अब होनी चाहिए। और, लगे हाथों एक लड़की की चर्चा भी छेड़ दी।