निर्झरिणी

निर्झरिणी, तेरी जल-धारा,ढोती मेरे सजग भाव को, तोड़ हृदय की कारा! पड़ा हुआ था, यथा सुप्त हो,बंदी था, पर आज मुक्त हो, विचर रहा, मकरंद-भुक्त हो, तेरा वह चिर-प्यारा।

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दीपक मेरे मैं दीपों की

दीपक मेरे मैं दीपों की सिंदूरी किरणों में डूबे दीपक मेरे मैं दीपों कीइनमें मेरा स्नेह भरा है इनमें मन का गीत ढरा है

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हिंदी का नया आख्यान साहित्य और मनोविश्लेषण

फ्रायड ने कला की इस परंपरागत यथार्थवादी परंपरा को उलट कर एक मनोवैज्ञानिक सौंदर्य सिद्धांत की स्थापना की। उसके अनुसार कला एक विक्षिप्त और विक्षुब्ध मानस की उपज है। कलाकार एक अभिशप्त व्यक्ति है जो प्रवृत्ति से ही अंतर्मुखी होता है। वह समाज में अपना सामंजस्य पाने में असमर्थ रहता है, इसलिए यथार्थ से पलायन करके वह अपने कल्पनालोक में शरण लेता है।

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