बूढ़े लाला

लाभडाल को तो मैंने अपनी आँखों के सामने बसते देखा”–बूढ़े लाला ने सफेद भौंहों के पीछे गहराई में छिपी दोनों आँखों को मेरी ओर गड़ाते हुए कहा।

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कवि-पत्नी

लो, नभ-मंदिर के कंचन-पट खोल, सुंदरी ऊषा आती अरुणांजलियों से प्रकाश की किरणों का अमृत बरसाती वनतरुओं के नीड़ों में है जाग पड़ा मंगल कल-कूजन नव रसाल-मंजरियों का है

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मुझे याद है (छठी कड़ी)

फिर मेरे मामा जी से बोले–रामवृक्ष की शादी तो अब होनी चाहिए। और, लगे हाथों एक लड़की की चर्चा भी छेड़ दी।

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निर्झरिणी

निर्झरिणी, तेरी जल-धारा,ढोती मेरे सजग भाव को, तोड़ हृदय की कारा! पड़ा हुआ था, यथा सुप्त हो,बंदी था, पर आज मुक्त हो, विचर रहा, मकरंद-भुक्त हो, तेरा वह चिर-प्यारा।

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दीपक मेरे मैं दीपों की

दीपक मेरे मैं दीपों की सिंदूरी किरणों में डूबे दीपक मेरे मैं दीपों कीइनमें मेरा स्नेह भरा है इनमें मन का गीत ढरा है

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