बूढ़े लाला
लाभडाल को तो मैंने अपनी आँखों के सामने बसते देखा”–बूढ़े लाला ने सफेद भौंहों के पीछे गहराई में छिपी दोनों आँखों को मेरी ओर गड़ाते हुए कहा।
लाभडाल को तो मैंने अपनी आँखों के सामने बसते देखा”–बूढ़े लाला ने सफेद भौंहों के पीछे गहराई में छिपी दोनों आँखों को मेरी ओर गड़ाते हुए कहा।
लो, नभ-मंदिर के कंचन-पट खोल, सुंदरी ऊषा आती अरुणांजलियों से प्रकाश की किरणों का अमृत बरसाती वनतरुओं के नीड़ों में है जाग पड़ा मंगल कल-कूजन नव रसाल-मंजरियों का है
फिर मेरे मामा जी से बोले–रामवृक्ष की शादी तो अब होनी चाहिए। और, लगे हाथों एक लड़की की चर्चा भी छेड़ दी।
प्रिये, जब पवन सूने में तुम्हारी सुधि जगा जाता उसी क्षण घन उमड़ नभ में मुझे बेहद रुला जाता
निर्झरिणी, तेरी जल-धारा,ढोती मेरे सजग भाव को, तोड़ हृदय की कारा! पड़ा हुआ था, यथा सुप्त हो,बंदी था, पर आज मुक्त हो, विचर रहा, मकरंद-भुक्त हो, तेरा वह चिर-प्यारा।
दीपक मेरे मैं दीपों की सिंदूरी किरणों में डूबे दीपक मेरे मैं दीपों कीइनमें मेरा स्नेह भरा है इनमें मन का गीत ढरा है