अहिंसात्मक प्रजातंत्र की बुनियाद

अपने देश में सब जगह आज हमें उत्पादन और दरिद्रता एक दूसरे से जुड़े हुए दिखाई देते हैं।

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आधी शताब्दी के विश्व-साहित्य की रूपरेखा

फ्रांस की क्रांति में जनता ने जिस स्वर्णिम विहान का स्वप्न देखा था, वह चूर-चूर हो गया; वैज्ञानिक आविष्कारों ने तप्त मरु में जलती हुई

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रुचि

प्रीत की दो अवस्थाएँ होती हैं। पहली अवस्था वह होती है जिसमें प्रीत पके दूध में जोरन पड़े दही की तरह जमते-जमते जम जाता है।

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हमें यह कहना है!

श्रावण के साथ दो पावन स्मृतियाँ बँधी हैं–एक तुलसीदास की, दूसरी प्रेमचंद की। दोनों की कलात्मक तुलना की बात नहीं; किंतु दोनों एक बात में बहुत मिलते हैं–जन-जीवन के साथ अपनी कला का निकटतम संपर्क स्थापित करने में।

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