कला का भाव-स्रोत
कला का मूल है मनुष्यत्व। मनुष्यत्व की सिद्धि तर्क का प्रसंग नहीं है–तर्क में इतना तात्विक सामर्थ्य नहीं है।
कला का मूल है मनुष्यत्व। मनुष्यत्व की सिद्धि तर्क का प्रसंग नहीं है–तर्क में इतना तात्विक सामर्थ्य नहीं है।
‘अश्क’ के एकांकी कल्पना के व्योम में विहार करने वाले रूमानी कवि की स्वप्निल पृष्ठभूमि पर विनिर्मित नहीं हुए हैं, उनमें यथार्थवाद की ठोस अनुभूतियों, मानसिक विश्लेषण तथा अंतर्द्वंद्व का निदर्शन है।
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!