आधी शताब्दी के विश्व-साहित्य की रूपरेखा
फ्रांस की क्रांति में जनता ने जिस स्वर्णिम विहान का स्वप्न देखा था, वह चूर-चूर हो गया; वैज्ञानिक आविष्कारों ने तप्त मरु में जलती हुई
फ्रांस की क्रांति में जनता ने जिस स्वर्णिम विहान का स्वप्न देखा था, वह चूर-चूर हो गया; वैज्ञानिक आविष्कारों ने तप्त मरु में जलती हुई
प्रीत की दो अवस्थाएँ होती हैं। पहली अवस्था वह होती है जिसमें प्रीत पके दूध में जोरन पड़े दही की तरह जमते-जमते जम जाता है।
श्रावण के साथ दो पावन स्मृतियाँ बँधी हैं–एक तुलसीदास की, दूसरी प्रेमचंद की। दोनों की कलात्मक तुलना की बात नहीं; किंतु दोनों एक बात में बहुत मिलते हैं–जन-जीवन के साथ अपनी कला का निकटतम संपर्क स्थापित करने में।
कला का मूल है मनुष्यत्व। मनुष्यत्व की सिद्धि तर्क का प्रसंग नहीं है–तर्क में इतना तात्विक सामर्थ्य नहीं है।
‘अश्क’ के एकांकी कल्पना के व्योम में विहार करने वाले रूमानी कवि की स्वप्निल पृष्ठभूमि पर विनिर्मित नहीं हुए हैं, उनमें यथार्थवाद की ठोस अनुभूतियों, मानसिक विश्लेषण तथा अंतर्द्वंद्व का निदर्शन है।