तब, यही तो होना था
जो कि एहसास-ए-कमतरी का होना था पता नहीं, ज़िंदगी का ये कौन-सा कोना था जिसमें सिर्फ़, होना था कि सिर्फ़ रोना था? और अगर सिर्फ़ रोना था तो फिर होना क्या था?
जो कि एहसास-ए-कमतरी का होना था पता नहीं, ज़िंदगी का ये कौन-सा कोना था जिसमें सिर्फ़, होना था कि सिर्फ़ रोना था? और अगर सिर्फ़ रोना था तो फिर होना क्या था?
जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते
उत्सवों और त्योहारों में तुम्हारी कथा की गूँज भरी होती है तुम्हारी मनोहारी व्याप्ति देखने के लिए भीतरी आँखें खुली होनी चाहिए मुक्त होना चाहिए मन-मंदिर का द्वार
कविता का शब्द हो जाना स्वप्न है मेरा कविता का शब्द बनकरअव्यक्त को व्यक्त करना अभिलाषा है मेरी अगर कविता में झाँकने का सहूर है
कीचड़ में मार्क्स और अम्बेडकर : जिन दिनों मैं चुन्नी मोहल्ले में गंगुर्रा वाली मौसी को दे दिए नाना के घर में रह रहा था, तब मामा अमर सिंह इसके साथ वाले कमरे में रहते थे।
सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो अब सबके पीछे सोई परत लखाई हा हा, भारत दुर्दशा न देखी जाई! जहँ भए शाक्य हरिचंदरु नहुष ययाती