अनुरंजन प्रसाद सिंह का रचनाकर्म
अनुरंजन प्रसाद सिंह साहित्य की दुनिया में जिस महत्त्व के अधिकारी हैं, वह महत्त्व उन्हें हम बिहारवासियों ने कभी नहीं दिया।
अनुरंजन प्रसाद सिंह साहित्य की दुनिया में जिस महत्त्व के अधिकारी हैं, वह महत्त्व उन्हें हम बिहारवासियों ने कभी नहीं दिया।
मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं कि अखबारनवीसी शैली और वायवीय अभिव्यक्ति से अब तक बची युवा कवि शहंशाह आलम की लोक-प्रसूत कविताएँ किसी समालोचना की मोहताज़ नहीं,
पत्रकारिता के धवल ही नहीं एक उन्नत शिखर भी थे पत्रकार जितेंद्र सिंह। गौरवर्ण, उन्नत ललाट और अतिशय विनम्र। बी.एच.यू. से हिस्ट्री में गोल्ड मेडलिस्ट। पहले इलाहाबाद में पं. नेहरू जी के अखबार ‘लीडर’ में पत्रकारिता की
अन्नपूर्णा अपने गाँव गई थी। गाँव गए बहुत दिन हो गया तो गाँव पहुँच गई। उसे तीन महीने पहले कोरोना हुआ था।
एक संस्था द्वारा गरीबों के बीच कंबल का बँटवारा किया जाना था। मैं भी आमंत्रित अतिथि थी। इस बीच मोबाइल पर रिंग हुआ।
मानवी जॉब करती है। पति दूसरे जगह काम करते हैं। वह अपने दो वर्षीय पुत्री के साथ अकेले ही रहती है।