रूप की बेड़ी
मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूँ। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है।
मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूँ। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है।
वीथिका अपनी मित्र भारती दत्त के साथ यहाँ आकर देर से खड़ी चढ़ती गंगा को देख रही थी। जून माह का यह आखिरी दिन है। ग्रीष्मावकाश है। परिसर खाली है।
बस आखिरी यही तो इक रस्ता है, बात कर यों चुप्पी साधने से तो अच्छा है, बात करपिघलेगी बर्फ कर भी यकीं हो न यूँ उदास क्यूँ सर को थाम के यहाँ बैठा है, बात कर
अरसे बाद सिराज को देखकर टुटुल मुस्कुराया। सिराज अपने पिता के पीछे खड़ा था। वह काफी लंबा हो गया है, उसकी पतली मूँछें भी उगने लगी थी। सिराज के पिता बटरफ्लाई मॉल के दरबान के आगे हाथ जोड़कर कह रहे थे।
‘नेपथ्य के नायक’ सामाजिक न्याय और समता के लिए लड़ने वाले ऐसे 25 नायकों की जीवनी है, जिनको हमारे इतिहास लेखन में उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया।