चौंका हुआ रहता है मन
अभी घर में मैं हूँ और मेरी माँ है लेकिन माँ चिंतित और उदास है मेरे भाई को घर से निकले दो घंटे हो चुके हैं
अभी घर में मैं हूँ और मेरी माँ है लेकिन माँ चिंतित और उदास है मेरे भाई को घर से निकले दो घंटे हो चुके हैं
चढ़ते दिन और ढलती शाम के बीच खाली होता घर जैसे इंतजार कर रहा होता है
कैलाश वाजपेयी उसी परंपरा के कवि हैं जिन्होंने कविता में वह सब कहने की चेष्टा की है जो बीसवीं शताब्दी के मनुष्य के साथ घटा है।
जो पढ़े लिखे विकसित थे पढ़ रहे थे बर्बरता और अपराधों के कानून की किताबें
कर्नाटक के दलित साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर कवि, नाटककार, निबंधकार ही नहीं, डॉ. सिद्धलिंगय्या कर्नाटक विधान परिषद के सदस्य, कन्नड़ प्राधिकार और कन्नड़ पुस्तक प्राधिकार के अध्यक्ष होते हुए भी स्वभाव से कोमल, मृदुभाषी, चिंतनशील व्यक्तित्व के धनी थे।
उन्हें तारों का टूटना पसंद नहीं और न नदियों का सूखना न ही धरती का फटना