रखते हैं आकाश
अचानक से कोई रोक दे नदी का बहना और असंगत हो जाए विस्थापित नियमों से!
अचानक से कोई रोक दे नदी का बहना और असंगत हो जाए विस्थापित नियमों से!
अजीब शाम का मंजर दिखाई देता है जब आफताब जमीं पर दिखाई देता हैमुझे तो नीलगगन के विराट आँगन में हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है
आपकी हद तलाश करते हैं अपना दिल पाश पाश करते हैंपत्थरों को तराश कर क्यूँ लोग देवता को तलाश करते हैं
अपनी साहित्य-साधना के लिए अनेक सम्मानों से विभूषित डॉ. जनमेजय से ‘नई धारा संवाद’ के तहत बीते दिनों मनमीत नारंग ने ऑनलाईन बातचीत की,
पत्थर को पिघलने में अभी वक्त लगेगा अंदाज बदलने में अभी वक्त लगेगाबेवक्त भला रात कहाँ जाएगी आखिर सूरज को निकलने में अभी वक्त लगेगा
सिर्फ उम्मीद पर टिकी मिट्टी कुछ नये ख्वाब देखती मिट्टी उड़ लो जितना यहीं पे आओगे कह रही है जमीन की मिट्टी