सही गलत पर अड़ा हुआ है

सही गलत पर अड़ा हुआ है जो रातभर में बड़ा हुआ हैअभाव में जब स्वभाव बदला उदार दिल भी कड़ा हुआ हैवो दौड़ने का सिखाता नुसखा अभी-अभी जो खड़ा हुआ हैधरा बताती उखाड़ लेना

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पाँव जमीं पर रख देने से

पाँव जमीं पर रख देने से, घरती-पुत्र नहीं होताचंदन को घसना पड़ता है, पौधा इत्र नहीं होतादुनिया चाहे कुछ भी कर ले, कह ले

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चाहे हकमारी करेगा

चाहे हकमारी करेगा या कलाकारी करेगादेखना जल्दी ही कोई घोषणा जारी करेगाआपका विश्वास शायद कुछ तो गद्दारी करेगा

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धरती से अंबर तक

धरती से अंबर तक ये हालात नहीं मौसम पर कब्जा कर ले औकात नहींमुर्दा बनकर जिंदा तो रह लेते हम जिंदा दिखना सबके बस की बात नहींहूनर, हिम्मत, मिहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात नहीं

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रेणु की कहानियों में द्वंद्व

ऐसा भारतवर्ष हमने चाहा था क्या? ऐसा लगता है, कहीं पतवार खो गई है। ...यह भी कोई प्रजातंत्र है? कलमबंद, जुबान बंद। पर आँखें खुलीं।

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चाहे कुछ भी करो

चाहे कुछ भी करो, नहीं आती शर्म इनसान को नहीं आतीरात आधी गुजर चुकी लेकिन मैं बुलाता हूँ, वो नहीं आतीमुझपे दीवानगी का है इल्जाम नींद तुमको भी तो नहीं आतीदिल ये जाता है, लौट आता है जां चली जाए जो, नहीं आती

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