समकालीन भारतीय साहित्य
संपादक बलराम के कुशल संपादन एवं परिश्रम से ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ का यह साफ-सुथरा अंक प्रशंसनीय बन पड़ा है।
संपादक बलराम के कुशल संपादन एवं परिश्रम से ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ का यह साफ-सुथरा अंक प्रशंसनीय बन पड़ा है।
सब शब्दों से अनछुआ एक विचित्र शब्द सा कराहता है मन। विचित्र बात है थकान मिटाते ही अगले पल फिर से प्रकट हो जाती है वह किसी दूसरे रूप में। फिर से संघर्ष... संसार के दुखों से बेचैन मन कोई पाबंदी भी नहीं रहम भी नहीं।
अनागत कविता में भविष्य के प्रति जिज्ञासा, आतुरता छिपी हुई है सामान्य अर्थों में कहा जाए तो अनागत आशावाद के सिवाय और कुछ नहीं है।
मनौतियाँ, साष्टांग प्रणाम, प्रार्थनाएँ इन्हीं में पाते हैं शांति भगवान का ध्यान करते हैं पर साथी मनुष्य पर नहीं देते ध्यान।
वह और उनके मित्रों ने मिलकर ‘चोंच पंथ’ कायम किया। जब वे लोग आपस में मिलते, तो दाहिने हाथ को चोंच की तरह बनाकर अभिवादन करते।
राधिका बाबू नाटककार भी थे। उनके उपन्यासों में ऐसे कई स्थल मिलेंगे जहाँ नाटकीय संवाद फिल्मी डायलॉग को भी मात करते हैं। नाटकीय परिस्थिति की अच्छी पकड़ और निर्वाह उपन्यासों में भी देखा जा सकता है।