भारतीय समाज के जाति-रंग

जाति को अच्छा बुरा कहना किसी को नहीं भाता। इसे व्यक्तिगत मान लिया जाता है। लेकिन एक जाति के अधिसंख्य लोगों का स्वभाव व व्यवहार दूसरी जाति के प्रति एक जैसा हो तो वह जातिगत क्यों नहीं माना जाए? बहन माया, माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमारिन माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमार।

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क्या थे किरदार क्या कहानी थी

क्या थे किरदार क्या कहानी थी वो भी क्या खूब जिंदगानी थीखूबसूरत जड़ें सितारे थे उसकी चादर जो आसमानी थीएक ठोकर पे था जहाँ सारा वो भी क्या जोश क्या जवानी थीघर था बेटे का, चुप ही रहना था उम्र ढलती हुई बितानी थी

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अरुणाचल का हिंदी मयूर रमण शांडिल्य

आज, रमण शांडिल्य की किसी हिंदी वाले को कोई परवाह नहीं, क्यों होगी? यह तो मृत्यु-पूजक देश बन कर रह गया है...!

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शल्यक्रिया

इतनी चीरफाड़ अनुभूति की मन के खोल को भेदकर शरीर के अंदर से धरती तक शल्यक्रिया शरीर को चीरकर शल्यक्रिया अतींद्रिय फूल नहीं खिलते क्या!

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कॉमेडियन की वापसी

अंकिया भाओना का विदूषक हरीतिका वन से आकर हमारे मानस में बसा पाँचवीं या छठी शताब्दी का शैशव की धुँधली अववाहिका में चेहरे पर रंग पोते बहुरूपिये उनकी उछलकूद, चीत्कार सीटीहास्य मधुर उलझन सपने के मंच पर चढ़ते हुए छोटे बड़े अवयव के

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