बाघ

घने जंगल के बाघ और मन के कोने में बसे हुए बाघ की समता, दूरातीतआश्चर्यजनक रूप से बढ़ते हैं लहू में निरूसार बने हुए बाघ

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हेमलेट

धूल की इस प्रात्यहिकता में विभिन्न आयतन के हेमलेट के साथ हमारा दृष्टि विनिमय होता है बंधु हेमलेट, संतान हेमलेट जीवन नाटक का रसज्ञ समालोचक समाधि खोदने वाले के साथ भी उसका कथोपकथन

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प्रेम माधुरी

यह संग में लागियै डोलैं सदा, बिन देखे न धीरज धानती हैं छिन्हू जो वियोग परै ‘हरिचंद्र’, तो चाल प्रलै की सु ठानती हैं बरुनी में धिरैं न झपैं उझपैं, पल में न समाइबो जानती हैं प्रिय पियारे तिहारे निहारे बिना, अँखिया दुखिया नहिं मानती हैं।

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कितने अकेले

आज से पहले हम नहीं थे कभी इतने अकेले जंगलों और कंदराओं में भी नहीं वहाँ भी हम साथ-साथ रहते थे करते थे साथ-साथ शिकार साथ-साथ झेलते थे शीत और धूप की मार यह ठीक है कि तब हमारा नहीं था कोई

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