कहीं खोया हूँ मैं
कहीं खोया हूँ मैं, तू गुम कहीं है ये मंजर आज भी कितना हसीं हैमुहब्बत आपसे करने की खातिर जरूरत आपकी मुझको नहीं हैनिकल कर आपकी बाहों से पाया
कहीं खोया हूँ मैं, तू गुम कहीं है ये मंजर आज भी कितना हसीं हैमुहब्बत आपसे करने की खातिर जरूरत आपकी मुझको नहीं हैनिकल कर आपकी बाहों से पाया
जागती आँखों में कुछ सपने लिए आ जाइए हम जलाएँगे उम्मीदों के दीये, आ जाइएसीख लीजे मुश्किलों में खिलखिलाने का हुनर लब पे गम की दास्ताँ मत लाइए, आ जाइएगड्डियों में ताश की हर दर्दो-गम को फेंटकर ढूँढ़ लेंगे सर्किलों के जाविये, आ जाइए
भले आए नहीं तुमको किसी अंजाम की खुशबू फिजा में खुद ही फैलेगी तुम्हारे काम की खुशबूतुम्हीं माने नहीं और चल पड़े ऊँची दुकानों में मुझे तो आ रही थी खूब ऊँचे दाम की खुशबू
जाति को अच्छा बुरा कहना किसी को नहीं भाता। इसे व्यक्तिगत मान लिया जाता है। लेकिन एक जाति के अधिसंख्य लोगों का स्वभाव व व्यवहार दूसरी जाति के प्रति एक जैसा हो तो वह जातिगत क्यों नहीं माना जाए? बहन माया, माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमारिन माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमार।
क्या थे किरदार क्या कहानी थी वो भी क्या खूब जिंदगानी थीखूबसूरत जड़ें सितारे थे उसकी चादर जो आसमानी थीएक ठोकर पे था जहाँ सारा वो भी क्या जोश क्या जवानी थीघर था बेटे का, चुप ही रहना था उम्र ढलती हुई बितानी थी
आज, रमण शांडिल्य की किसी हिंदी वाले को कोई परवाह नहीं, क्यों होगी? यह तो मृत्यु-पूजक देश बन कर रह गया है...!