कविता में उतरे शब्द

ये अपना अस्तित्व खोकर ही खोलते हैं सर्जना का द्वार अपना अस्तित्व देकर ही आदमी भी रचता है नई पीढ़ी अस्तित्व को विलीन किए बगैर क्या संभव हुई है कोई सर्जना?

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चिड़िया का ब्याह

चिड़िया का दहेज नहीं सजताचिड़िया को शर्म नहीं आतीतो भी  चिड़िया का ब्याह  हो जाता है चिड़िया के ब्याह में पानी बरसता हैपानी बरसता है पर चिड़िया कपड़े नहीं पहनती चिड़िया नंगी ही उड़ान भरती है

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मूर्ख गिम्पेल

मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता, बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ। किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं।

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हत्यारों की वापसी

उन्हें मालूम है कि भीड़ का होना इस दुनिया का होना है भीड़ जो बनती है इस मुल्क में वतन की लौ जैसे मशालें जलती हैं धरती के इस कोने

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अपनी सी नमी लिए

जड़ हो या चेतन दिखा तो नहीं कोई जिसमें प्यास न हो। गुजर कर तो देखो पत्थरों के पास से थोड़ी भीगी-सी सहलाने की आहट लिए।

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मत कुतर देना

मुझे रहने दो थमा कितनी गतिशीलता है इसमें!सँभालो, सँभालो मेरे अभी-अभी आए पंखों को इनकी मासूम उड़ान को।मत कुतर देना इन्हें कविता समझ अरे, ओ, हतभागी निषाद।

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