डॉ. नीरू झा को गुस्सा क्यों आता है?

डॉ. नीरू झा की बेटियाँ सुंदर दिखने की होड़ में इस कदर दिवानी हैं कि उन्हें समझाने में उसका अपना रक्तचाप बढ़ता जा रहा है।

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चाँद की गवाही में कुकून से निकली औरत

आजकल की पीढ़ी के कुछ युवाओं के कटु यथार्थ हैं, जिनसे खालिस देशी माँ-बाप की देशी मानसिकता को टकराना पड़ रहा है।

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नई धारा संवाद : अलका सरावगी से बातचीत

पसंद तो ज्यादा उपन्यास पढ़ना ही है पर असल में उपन्यास उतने नहीं पढ़े जाते हैं जब तक कि वो...जैसे अब ‘रेत समाधि’ पर रिव्यू लिखना था,

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आप कब किसके नहीं हैं

जो तसव्वुर था हमारा आप तो वैसे नहीं हैंजानते हैं आपको हम हाँ मगर कहते नहीं हैं बात करते हैं हमारी जो हमें समझे नहीं हैंजो पता तुम जानते हो

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पास आना चाहता हूँ

पास आना चाहता हूँ बस बहाना चाहता हूँआप से रिश्ता नहीं तो क्या निभाना चाहता हूँसिर्फ़ मुझसे ही रहे जो वो ज़माना चाहता हूँकाश ख़ुद भी सीख पाता जो सिखाना चाहता हूँजो मुझे हैं याद उनको याद आना चाहता हूँ।

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उसने ख़ुद को पाने तक

बस किरदार बचाने तक  ज़िंदा है मर जाने तकसिर्फ़ मुझे ही सोचेगा  वो मुझ-सा हो जाने तकमुझको ढूँढ़ न पाएगा मुझमें गुम हो जाने तक ख़ुद ही बेपहचान हुआ 

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