कितने अकेले
आज से पहले हम नहीं थे कभी इतने अकेले जंगलों और कंदराओं में भी नहीं वहाँ भी हम साथ-साथ रहते थे करते थे साथ-साथ शिकार साथ-साथ झेलते थे शीत और धूप की मार यह ठीक है कि तब हमारा नहीं था कोई
आज से पहले हम नहीं थे कभी इतने अकेले जंगलों और कंदराओं में भी नहीं वहाँ भी हम साथ-साथ रहते थे करते थे साथ-साथ शिकार साथ-साथ झेलते थे शीत और धूप की मार यह ठीक है कि तब हमारा नहीं था कोई
अधिकांश लोग तो ऐसे ही हैं। उनकी दृष्टि में भी मैं ही पापी हूँ, जो उनको अपने घर आने से रोक रहा हूँ।
इसका बस एक ही इलाज है और वह है शादी–इसकी शादी जल्द करा दें फिर ये दौरे आने अपने आप ही बंद हो जाएँगे।
चलो अब गैर-दलितों में विशेषकर ब्राह्मणों में भी जाति-पाति, ऊँच-नीच को लेकर बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है।
जब तुम किसी काम को टालने के लिए हमेशा कहते थे–‘थोड़ा-सा और रुक जाएँ?’ याद करो, सालों पुरानी यही लाइन तकियाकलाम बनती गई।’
पेट की भूख। लत्ता-कपड़ा की भूख। छत-छाया की भूख। इनके बाद बड़ाई की भूख हुआ करती है। लखीनाथ सपेरा ने हाथ से पीतल का कड़ा निकाला। कानों में पहने कुंडल निकाले। बूड़ा रेत और घास की जड़ से रगड़-रगड़, मल-मल खूब धोए। चमक सोना को मात देने लगी।