धूप, धूल और धक्के
चौरासी बरस का शिंगारा सिंह मैली-सी सफेद दाढ़ी, मैले-से सफेद कुर्ते-चादर और मसली-सी सफेद पगड़ी में बहुत पहले सफेदी किए हुए किसी पुराने ‘कोठे’ जैसा लगता है। गाँव से बाहर दो या शायद तीन जामुन और टाहली के पेड़ों के नीचे, एक पुराना नल के और शीरू की चाय-पकौड़ियों वाली ‘हट्टी’ से मिलकर बने इस तथाकथित ‘बस-अड्डे’ पर कभी बैठे...कभी खड़े...कभी टहलते हुए किसी ठीक-ठाक सी बस का इंतजार करते...उसे चार-पाँच घंटे से भी ज्यादा हो गए हैं।