धूप, धूल और धक्के

चौरासी बरस का शिंगारा सिंह मैली-सी सफेद दाढ़ी, मैले-से सफेद कुर्ते-चादर और मसली-सी सफेद पगड़ी में बहुत पहले सफेदी किए हुए किसी पुराने ‘कोठे’ जैसा लगता है। गाँव से बाहर दो या शायद तीन जामुन और टाहली के पेड़ों के नीचे, एक पुराना नल के और शीरू की चाय-पकौड़ियों वाली ‘हट्टी’ से मिलकर बने इस तथाकथित ‘बस-अड्डे’ पर कभी बैठे...कभी खड़े...कभी टहलते हुए किसी ठीक-ठाक सी बस का इंतजार करते...उसे चार-पाँच घंटे से भी ज्यादा हो गए हैं।

और जानेधूप, धूल और धक्के

हमारे बीच का अभिमानी

उसके हाथ में तलवार या हथियार या कंधे पर जाल नहीं होता था उसे गेहूँ से था प्यार और दीवारों से महासागरों से भी इसलिए कि उसमें फल आएँ उसमें द्वार खुलें!

और जानेहमारे बीच का अभिमानी

नाम बड़े और दर्शन छोटे

सभापुर नगर भी आखिर बाजारवाद की लपेट में आ ही गया। बाजारवाद से जिसका जो नफा-नुकसान हुआ वह तो हुआ ही, सबसे अधिक क्षति हुई मुख्य पथ पर ‘होटल सर्वश्रेष्ठ’ और उसके ठीक बगल से लगे जय भवानी पान भंडार की।

और जानेनाम बड़े और दर्शन छोटे

उसका मारा जाना तय था

तय था उसका मारा जाना क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा की वकालत करता भीड़ में सबसे आगे जा खड़ा होता था वह मुट्ठियाँ बाँधेतय था कि वह एक न एक दिन मारा जाएगा इसलिए कि वह जनतंत्र में विश्वास करता जनहित की बातें करता था और अक्सर जनहित याचिकाएँ दायर करने में लगा रहता था

और जानेउसका मारा जाना तय था

तुम्हारे आतंक से

मेरी समझ से मेरा तुम्हारा रिश्ता सड़क पर चल रहे दो अनजान आदमी की तरह है जिसे अगले चौराहे पर जाकर मुड़ जाना है अलग-अलग दिशाओं में अपने-अपने काम पर जाने के लिए

और जानेतुम्हारे आतंक से

कलम, आज उनकी जय बोल

रामधारी सिंह दिनकर प्रखर और संवेदनशील कवि थे। उनके काव्य व्यक्तित्व का निर्माण स्वाधीनता संग्राम के घात-प्रतिघात के बीच हुआ था। उस समय देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष निरंतर बढ़ रहा था। समय ऐसा था जहाँ वायवीय निरुद्देश्य गीतों की गुंजाइश न थी। इसीलिए वे समय की विडंबनाओं से उलझते रहे। उनका समूचा लेखन पराधीनता के विरोध, शोषण पर प्रहार तथा समता के समर्थन की पहचान है। अपने युग का तीखा बोध था उन्हें। वे कहते थे मैं रंदा लेकर काठ को चिकना करने नहीं आया हूँ। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी है, जिससे मैं जड़ता की लकड़ियों को फाड़ रहा हूँ।

और जानेकलम, आज उनकी जय बोल