आओ, हाथ में हाथ लें!

हम लगातार छलते रहे हैं पेट और दिल की अनसुलझी गुत्थी सुलझाने मेंहम जानते हैं कि कुछ भी बदल पाना  तुरंत हमारे बूते का नहीं फिर भी हम सक्रिय रहेंगे

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तब, यही तो होना था

जो कि एहसास-ए-कमतरी का होना था पता नहीं, ज़िंदगी का ये कौन-सा कोना था जिसमें सिर्फ़, होना था कि सिर्फ़ रोना था? और अगर सिर्फ़ रोना था तो फिर होना क्या था?

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सहयात्रा के पचहत्तर वर्ष

जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते

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राम

उत्सवों और त्योहारों में तुम्हारी कथा की गूँज भरी होती है तुम्हारी मनोहारी व्याप्ति देखने के लिए भीतरी आँखें खुली होनी चाहिए मुक्त होना चाहिए मन-मंदिर का द्वार

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अक्षर का वक्तव्य

कविता का शब्द हो जाना स्वप्न है मेरा कविता का शब्द बनकरअव्यक्त को व्यक्त करना अभिलाषा है मेरी अगर कविता में झाँकने का सहूर है

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चिड़िया का ब्याह

चिड़िया का दहेज नहीं सजताचिड़िया को शर्म नहीं आतीतो भी  चिड़िया का ब्याह  हो जाता है चिड़िया के ब्याह में पानी बरसता हैपानी बरसता है पर चिड़िया कपड़े नहीं पहनती चिड़िया नंगी ही उड़ान भरती है

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