मेरी मजबूर सी यादों को

ये जो तुम मुझको मुहब्बत में सजा देते हो मेरी खामोश वफाओं का सिला देते होमेरे जीने की जो तुम मुझको दुआ देते हो फासले लहरों के साहिल से बढ़ा देते होअपनी मगरूर निगाहों की झपक कर पलकें मेरी नाचीज सी हस्ती को मिटा देते हो

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दिल से संसद तक तेजेंद्र ही तेजेंद्र

तेजेंद्र शर्मा–यह नाम मस्तिष्क में आते ही मानो हलचल सी होने लगती है। उसकी याद के साथ साथ उससे मिलने की बेचैनी मन में बढ़ने लगती है। उसकी सुंदर, गहरे बेधने वाली आँखें और होंठों की भोली मुस्कान नटखट कान्हा की तर्ज पर ही बनी है। द्वापर के उस महानायक से यह हमारा नायक कुछ मिलता जुलता सा लगता है। याद नहीं कब से उसे जानता हूँ, लगता है कई युग बीत गए हैं।

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सहमे सहमे आप हैं

मस्जिदें खामोश हैं, मंदिर सभी चुपचाप हैं कुछ डरे से वो भी हैं, और सहमे सहमे आप हैं वक्त है त्यौहार का, गलियाँ मगर सुनसान हैं धर्म और जाति के झगड़े बन गए अब पाप हैं

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संवेदना के विस्तार की कहानियाँ

तेजेंद्र शर्मा हिंदी के एक ऐसे प्रवासी कहानीकार हैं जो दो देशों के बीच वैश्विक स्तर पर आ रहे बदलावों के बीच जीवन की ऊष्मा, संवेदना और मानवीय रिश्तों की अंतरतहों तक दृष्टि डालते हुए उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कथा के रूप में सामने लाते हैं। तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में सामाजिक विषयों की विविधता है। उनकी कहानियों के केंद्र में परिवार है खासकर मध्यमवर्गीय परिवार। पारिवारिक संबंधों का, मानवीय इच्छाओं का आख्यान करती इन कहानियों में भाषा सहज और प्रवाहमयी है।

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बँधे बँधाए साँचे को तोड़ती कहानियाँ

तेजेंद्र की कहानियों में सभ्यताओं का द्वंद्व है, समाज का वह विद्रूप चेहरा है जिसे पूँजीवाद रह-रहकर बेनकाब करता चलता है। तेजेंद्र जी की भाषा में एक तरह का ‘इन्हेरेंट विट’ है जो कहानियों में एक खास किस्म की रवानी पैदा करता है और हिंदी उर्दू की साझी परंपरा की किस्सागोई की विरासत की याद दिलाता है। तेजेंद्र शर्मा की रेंज बहुत बड़ी है। उनके समकालीन कई कथाकार एक ही कहानी को बार बार लिखकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय होने का दंभ भरते रहे जबकि यह लेखक समाज की अलग अलग विडंबनाओं को अपनी कथाओं के माध्यम से समझते रहे।

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मृत्युबोध के बहुरंग की कहानियाँ

प्रस्तुत कहानी में मृत्यु दो रूपों में पुरजोर तरह से उपस्थित है मुझे लगता है तेजेंद्र शर्मा की अन्य सभी कहानियों की तुलना में मृत्यु पर जितना विस्तृत चिंतन लेखक ने ‘हथेलियों में कंपन’ में किया है अन्यत्र दुर्लभ है। मृत्यु का दूसरा सिरा मौसा नरेन के जवान बेटे अमर की मृत्यु से जुड़ा है। लेखक ने पूरी कहानी में व्यंग्यात्मक शैली में मृत्यु को अनेक संदर्भों में व्याख्यायित किया है। मृत्यु यदि एक बाजार है, उसकी मंडी भी लगती है, वह एक व्यवसाय है, तो मृत्यु एक हस्ताक्षर भी है। कभी-कभी अपने प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन करके अपने क्रम को उलटने वाला हस्ताक्षर भी मृत्यु ही है। इस तरह मृत्यु अंत नहीं आरंभ है जीवन का।

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