मैं कहानी लेखन में बौद्धिकता का पक्षधर नहीं हूँ–तेजेंद्र शर्मा

सृजन कभी सीखा नहीं जा सकता। उसे केवल माँझा जा सकता है। सृजन की आवाज अंतर्मन से ही उठती है–एक विचार के तौर पर। इसलिए मैं सृजन के लिये विचार को महत्त्वपूर्ण मानता हूँ, विचारधारा को नहीं। राजनीतिक विचारधारा के दबाव में पैंफलेट तो लिखा जा सकता है साहित्य नहीं। जब जब हमारी कलम आम आदमी के कष्ट और दुःख के लिये उठेगी वो स्वयं ही बेहतरीन साहित्य की रचना करेगी।

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सपने और उम्मीदों की कविताएँ

किसी भी कवि के लिए युग के दबावों को अनदेखा करना संभव नहीं होता। उसकी चिंता के केंद्र में समय, समाज, सत्ता, जीवन-मूल्य होते हैं। वैसे भी कविता के सरोकार मूलतः मनुष्य के सरोकार ही होते हैं और कवि को अपने समय की विपरीत परिस्थितियों का अहसास रहता है। हालाँकि यह बात उन कवियों या रचनाकारों पर लागू नहीं होती जो जीवन की सामाजिकता को नहीं, व्यक्तिगत नजरिये में यकीन करते हैं।

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आलोचकों की नज़र में तेजेंद्र शर्मा

तेजेंद्र शर्मा शब्दों का इस्तेमाल कहानी को विकसित करने में स्प्रिंगबोर्ड की तरह करते हैं। इससे कहानी में स्मार्टनेस पैदा होती है और पाठक की रुचि बनी रहती है।

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तेजेंद्र शर्मा की कहानियाँ

तेजेंद्र शर्मा अपनी कहानियों में अपने समय के परिवेश को पूरी गहनता और सघनता से व्यक्त करते है। उनकी कहानियों में फैले परिवेश का विस्तार देशी और विदेशी पृष्ठभूमि पर आधारित है। अपनी कहानियों में तेजेंद्र शर्मा उस परिवेश को उद्घाटित करते हैं जो हमारी चेतना को बहुत गहरे जाकर उद्वेलित और प्रभावित करता है।

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