बलिपथ के गीत

जब राष्ट्रोत्थान की भावना दिनोंदिन अपना व्यापक रूप धारण करती जा रही थी, उन दिनों भी ‘मिलिंद’ मिलिंद था। वह कभी अकोला में अध्ययन करता था, तो कभी पूना के तिलक विद्यापीठ की परीक्षा देता था।

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पावस और लोकगीत

भारतीय ग्राम्य जीवन सदा से संगीतमय रहा है। कर्ममय ग्राम्यजीवन में भी आघात-व्याघात, प्रेम-विरह, सुख-दुख के अनुभवों के स्रोत छंदबद्ध हो कर निकलते हैं।

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कौन होइहैं गतिया

“दूर हट, कुलक्षणी! आखिर तूने छू दिया न मेरी पूजा की आसनी। आचमनी का पानी भी नापाक हुआ और भोग की मिठाइयाँ भी।”

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