शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण
शरतचंद्र का पहला परिचय मुझे उनकी जिस रचना द्वारा मिला था वह था उनका सबसे नीरस उपन्यास–‘पल्ली-समाज’।
शरतचंद्र का पहला परिचय मुझे उनकी जिस रचना द्वारा मिला था वह था उनका सबसे नीरस उपन्यास–‘पल्ली-समाज’।
जिस ओर वह जाता था, लोगों की पद-धूलि का मेघाडंबर घिर आता था, मानव-कंठों का निनाद गूँज उठता था, तूफान-सा आ जाता था, पर इनके बीच उसका ज्योतिर्मय अंतर उसी तरह अविकृत रहता था
क्या कभी हमने यह सोचा है कि हिंदी में उनके साहित्यकारों की जीवनियाँ कितनी कम हैं? क्या तमाशा है, जिन्होंने संसार को अपनी कृतियों से अमरता दी, उनकी कृतियों की कहानी कह कर कोई अपने को अमर करने को तैयार नहीं!
सूफी मार्ग की अंतिम मंजिल प्रेम और मारिफ (ज्ञान) हैं, जिनके द्वारा साधक परमात्मा के दर्शन करता है और अंत में उसके साथ एकमेक हो जाता है।
बीत गए जो दिन, उनका है आँसू ही आभार! सखि, यह जीवन का व्यापार!
उस दिन की ट्रेन-यात्रा में आराम से बेंचों पर बैठकर खुली खिड़की से प्राकृतिक दृश्यों का उपभोग करने का अवसर यात्रियों को नहीं मिल पाया था। भीड़, सो भी भयानक भीड़।