कौन होइहैं गतिया

“दूर हट, कुलक्षणी! आखिर तूने छू दिया न मेरी पूजा की आसनी। आचमनी का पानी भी नापाक हुआ और भोग की मिठाइयाँ भी।”

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शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण

शरतचंद्र का पहला परिचय मुझे उनकी जिस रचना द्वारा मिला था वह था उनका सबसे नीरस उपन्यास–‘पल्ली-समाज’।

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शंकर विजय

जिस ओर वह जाता था, लोगों की पद-धूलि का मेघाडंबर घिर आता था, मानव-कंठों का निनाद गूँज उठता था, तूफान-सा आ जाता था, पर इनके बीच उसका ज्योतिर्मय अंतर उसी तरह अविकृत रहता था

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हमें यह कहना है!

क्या कभी हमने यह सोचा है कि हिंदी में उनके साहित्यकारों की जीवनियाँ कितनी कम हैं? क्या तमाशा है, जिन्होंने संसार को अपनी कृतियों से अमरता दी, उनकी कृतियों की कहानी कह कर कोई अपने को अमर करने को तैयार नहीं!

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