जय वसुंधरे!
यह धरती अधिवास युगों से यही हमारी परिजन फूले-फले कि जैसे मधुवन क्यारी
यह धरती अधिवास युगों से यही हमारी परिजन फूले-फले कि जैसे मधुवन क्यारी
हाँ, तो यह मांडव है–शाही महलों का खंडहर। सैकड़ों नहीं, हजारों वर्ष बीत जाएँ और उन वर्षों पर भी कई युग दिन बनकर निकल जाएँ, लेकिन जब तक ये खंडहर हैं, तब तक इनके निर्माताओं की महान महात्वाकाँक्षा यहाँ व्यक्त रहेंगी और उनके प्रभाव से कोई भी पथिक अपने आपको मुक्त नहीं पा सकेगा।
हाँ, बेनीपुरी जी, जिनकी जवानी, स्फूर्ति और मस्ती अजर-अमर कही जाती थी–वे भी बूढ़े होने लगे हैं! वृद्धावस्था की एक सीढ़ी अचानक वे चढ़ गए हैं।
मदन–हिंदी का एक लेखक, अथवा हिंदी के लेखकों की साकार परिभाषा। आयु लगभग 35 वर्ष, परंतु चेहरा कहता है कि आयु इससे दस वर्ष अधिक है। करुणा–मदन की पत्नी। माता और पत्नी की संज्ञा लिए भारतीय नारीत्व की ज्वाला पर बुझी-सी। आयु लगभग 30 वर्ष।
उस दिन हिंदी के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार डॉ. राजकुमार वर्मा एक बहुत जरूरी कागज अपनी फाइल में ढूँढ़ रहे थे तो लिफाफे में उनकी एक चमकदार करैत साँप से भेंट हो गई।
राजनीति ने साहित्य को सदा से दबाया है। राजनीतिक पंत के नाम ने साहित्यिक पंत के नाम को अपने में पचा लिया है।