रीतिकाव्य : स्त्री के दृष्टिकोण से

रीतिकाल के कवियों ने एक निश्चित या विशिष्ट प्रणाली को दृष्टिगत रखते हुए काव्य रचना की, क्योंकि रीतिकाल में ‘रीति’ शब्द एक विशेष प्रकार की ‘पद रचना’ या परिपाटी का सूचक है।

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यादों की गठरी में

नायिका के विरह को तो हिंदी साहित्य में अनेकानेक विद्वानों ने शब्दबद्ध करने की चेष्टा की है और जिसे अनमोल निधि के रूप में संग्रहीत भी किया जाता रहा है,

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लाल निशान

पानी खतरे का लाल निशान पार कर चुका है ज्यादा दूर नहीं है वह समय जब साँस लेने की जुर्रत में पानी नाक के भीतर समा जाएगा और ज़िदगी की साँस उखड़ जाएगी।

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ऋतुराज

माना, असंख्य वर्णों नादों गंधों स्पर्शों का समन्वित स्वर व्याप्त है तुम में संपूर्ण सौंदर्य और ऐश्वर्य से परिपूर्ण ऋतुराज हो तुम

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एक कोमल-सी याद : रमेश रंजक

रंजक जनकवि थे। उन्हें जनता के बीच दुबारा कैसे लाया जाय, इसकी फ़िक्र फ़िक्रमंदों को करनी चाहिए। उनकी प्रशंसा के पुल बाँधकर हम वह नहीं कर पाएँगे जो यह कविताएँ चाहती हैं।

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स्वर्ग की सीढ़ी

भोर हो चुकी थी, मन ही मन ईश्वर का नाम लेती गोदावरी देवी बालकनी में बैठी स्वर्णिम समय का आनंद लेतीं निर्निमेष दृष्टि से सामने निहार रही थी।

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