आवाज़
जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? कभी-कभी, गंजे को भी खाज़ होती है और सिर्फ़ नगाड़े की ही नहीं, तूती की भी आवाज़ होती है लो, देख लो, वहाँ, उधर सुर्ख-स्वर्णिम सुबह हो रही है और एक बार फिर
जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? कभी-कभी, गंजे को भी खाज़ होती है और सिर्फ़ नगाड़े की ही नहीं, तूती की भी आवाज़ होती है लो, देख लो, वहाँ, उधर सुर्ख-स्वर्णिम सुबह हो रही है और एक बार फिर
गीत की अंतर्वस्तु के सहज संप्रेषण के लिए उपयुक्त और सक्षम भाषा माहेश्वर तिवारी के पास है। उनके बिंबों में भी अनुभवों और विचारों को वहन करने की शक्ति भरपूर है।
अपना होना तब बनती है सागर जब धरती खोती हैअपना सूक्ष्म अस्ति भाव तब बनती है सुगंध और रंग इस जगत में सुगंध होने के लिए
मैं रात-रातभर करवट बदलता बिस्तर की सिलवटों से बने इंडिया के मानचित्र में भारत को ढूँढ़ता हूँभारत और इंडिया के बीच चल रही बहस में शामिल इंडिया की वकालत करते लोगों
हम लगातार छलते रहे हैं पेट और दिल की अनसुलझी गुत्थी सुलझाने मेंहम जानते हैं कि कुछ भी बदल पाना तुरंत हमारे बूते का नहीं फिर भी हम सक्रिय रहेंगे
साहित्य का यह समन्वयात्मक रूप ही उसका विशिष्ट उद्देश्य परिलक्षित होगा। कोई भी साहित्य जो हमें यह आदेश दे कि हम सौंदर्य प्रेमी हैं