धर्म ध्वजा के नीचे
मंजुल की नजरों ने उस स्त्री का पीछा किया। सामने ही दरवाजा था, जिसमें से दिख रहा था कि उस स्त्री ने एक चमकदार चाकू से सेब काटा और अपने रोते हुए लड़के को थमा दिया।
मंजुल की नजरों ने उस स्त्री का पीछा किया। सामने ही दरवाजा था, जिसमें से दिख रहा था कि उस स्त्री ने एक चमकदार चाकू से सेब काटा और अपने रोते हुए लड़के को थमा दिया।
चिड़िया का दहेज नहीं सजताचिड़िया को शर्म नहीं आतीतो भी चिड़िया का ब्याह हो जाता है चिड़िया के ब्याह में पानी बरसता हैपानी बरसता है पर चिड़िया कपड़े नहीं पहनती चिड़िया नंगी ही उड़ान भरती है
देती हूँ उन्हें एक दृष्टि पथ खुद तय करने देती हूँ अपना रास्ता भटकाव की भीड़ में नहीं बनने देती हूँ आत्ममुग्धता का शिकार
उमा नतमस्तक है माँ के लाड़ और वात्सल्य के आगे। रात सोने गई, मन को टटोला...वो चाहता है माँ के सीने से लग जाय, चरणों में लोट जाय, बिलकुल वैसे ही जैसे नेहा उसके गले से लिपट जाती है।
घर में फैले अँधेरे में ढिबरी की मद्धिम रोशनी में माँ के गोल-मटोल साँवले चेहरे में बड़ी-सी आँखें जुगनू-सी चमक रही थीं। विपदा का ध्यान माँ की बातों पर जम गया था।
मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता, बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ। किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं।