हत्यारों की वापसी
उन्हें मालूम है कि भीड़ का होना इस दुनिया का होना है भीड़ जो बनती है इस मुल्क में वतन की लौ जैसे मशालें जलती हैं धरती के इस कोने
उन्हें मालूम है कि भीड़ का होना इस दुनिया का होना है भीड़ जो बनती है इस मुल्क में वतन की लौ जैसे मशालें जलती हैं धरती के इस कोने
जड़ हो या चेतन दिखा तो नहीं कोई जिसमें प्यास न हो। गुजर कर तो देखो पत्थरों के पास से थोड़ी भीगी-सी सहलाने की आहट लिए।
मुझे रहने दो थमा कितनी गतिशीलता है इसमें!सँभालो, सँभालो मेरे अभी-अभी आए पंखों को इनकी मासूम उड़ान को।मत कुतर देना इन्हें कविता समझ अरे, ओ, हतभागी निषाद।
पांडेय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का बहुकोणीय विवेचन तो किया ही है, उनके लेखन की बानगी का भी एक खंड ग्रंथ में है, जिसमें उनका अप्रकाशित उपन्यास ‘फरिश्ते’ भी है।
नहीं रहा मैं कभी ठहर कर अतीत में या वर्तमान में ही।रहा हूँ सदा भविष्य में भले ही जीते हुए वर्तमान में।
मच्छरों से डरकर, हारकर कैद हो रहा है इनसान और अपने कैदखाने का नाम दे रहा है–मच्छरदानी। इतने में बिजली आ गई और डॉ. साहिबा चाय