सोलह दूनी अड़तीस

फ़लसफ़े और भूख विलोम शब्द हैं एक दिन सभी फ़लसफ़ों को सड़कों पर ले जाएँगे और देखेंगे झोपड़ा फटा ब्लाउज़ और कैसे भूख फ़लसफ़ों को खाने के लिए मजबूर है फ़लसफ़े की कतरन ब्लाउज़ पर चिपका बचे हिस्से को जाड़ा ओढ़ लेगा

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लोक जगत का लड़का

लगभग देहात और लगभग बीहड़ के बीच से वह लगभग कस्बा आया था और उसे यह कस्बा लगभग से आगे बढ़ पूरा का पूरा शहर लगा था

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कवि की आत्महत्या

अभिनेता अभिनय करते-करते मृत्यु का मंचन करने लगता है आप उन्मत्त होते हैं अभिनय देख पीटना चाहते हैं तालियाँ मगर इस बार वह नहीं उठता क्योंकि जीवन के रंगमंच में एक ही ‘कट-इट’ होता है

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बेवजह

कभी-कभी बेवजह ही उग जाती है घास पत्थर के सख्त शरीर पर बेवजह ही खिल कर गिर जाते हैं हरसिंगार बेवजह ही शोर मचाता है समंदर बेवजह ही बरस जाते हैं

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जिरह

खाई पाटी भी जा सकती है चट्टान लाँघी भी जा सकती है या अपनी ही तरफ़ बनाया जा सकता है एक छोटा-सा घर जहाँ हर ज़हनी बहस पहनी जाए

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