हिम्मत
तुम्हारे मुट्ठी भींच लेने और आँखें बड़ी करने से अब न आत्मा डरने वाली और न एक स्त्री का शरीर तुमने रुई के फाहों सा नरम पाया था उसे पर उन्हीं कोमलाँगियों पर
तुम्हारे मुट्ठी भींच लेने और आँखें बड़ी करने से अब न आत्मा डरने वाली और न एक स्त्री का शरीर तुमने रुई के फाहों सा नरम पाया था उसे पर उन्हीं कोमलाँगियों पर
पत्ते झर रहे हैं फूल सुख चुके हैं मगर कुछ फल बचे हैं पेड़ों की शाख पर जिन्हें तुम शायद गिन सकते हो। तुम गिन सकते हो प्रकृति के सारे मौसमों को
अरे! कब तक अलापते रहोगे एक ही राग कब तक इस दंभ में रहोगे तुम्हारे कदमों से आगे कोई कदम बढ़ नहीं सकता तुम्हारी पोटली से भारी दूसरों की नहीं हो सकती और तुमसे ज्यादा मॉडर्न तो कोई हो नहीं सकता
उसने खूब लिखा स्त्री को खूब पढ़ा स्त्री को खूब बिके किताब खूब लगाए नारे पर सुना है आजकल वह लिखना-पढ़ना भूल सा गया है क्योंकि उसकी खुद की स्त्री ने
पैर थक जाते हैं घुटने जवाब दे जाते हैं झुक जाती है कमर पर कितना ढीठ है यह आदम जात लँगड़ाते हुए घसीटते हुए वह मोह-माया में लिपटा हुआ अपनी लालसा की गठरी
दीवारों पर टँगते नहीं कैलेंडर मशीनों में बंद हो जाती हैं तारीख़ें फिर भी हर बार की तरह फिर परिवर्तन का ढोल बजाते रोबोट बना आएगा नया साल।