हिंदी लघुकथा में मेरी सहभागिता

मेरा यह सौभाग्य रहा है कि मैं अभी तक लघुकथा के प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण संकलनों का एक उल्लेखनीय हिस्सा रहा हूँ।

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जिंदगी की कहानी

जिंदगी की कहानी रही अनकही दिन गुजरते रहे, साँस चलती रही।अर्थ क्या, शक्क की अनमने रह गए कोष से जो खिंचे तो तने रह गए वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई धूप ढलती रही, छाँह छलती रही!

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गौर करो तो सुन पाओगे

गौर करो तो सुन पाओगे परदे भी क्या कुछ कहते हैंखिड़की से ये टुक-टुक देखें नभ में उड़तीं कई पतंगें अक्सर नीदों में आ जाते सपने इनको रंग-बिरंगे लेकिन इनको नहीं इजाजत

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यथार्थ की जमीन पर खड़ी कहानियाँ

सामाजिक यथार्थ को शब्दों में पिरोकर कहानीकार अशोक कुमार सिन्हा ने अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को निभाने की भरपूर कोशिश की है।

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मजबूरी ही पैदल चलती

मजबूरी ही पैदल चलती सिर पर लादे धूपआँतों में अंगारे रखकर चलते जाते पाँव लेकिन इनको भान नहीं अब बदल चुका है गाँव लाचारी, उम्मीदें हारी नहीं कहीं भी छाँव और राह में मिलते केवल सूखे अंधे कूपभूख, रोग, दुर्घटना, चिंता है मौसम की मार हिम्मत कब तक साथ निभाये किस्मत ही बीमार

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इन अनचाहें बदलावों से

इन अनचाहे बदलावों से डर लगता हैहम अपने कंफर्ट जोन को त्यागें कैसे सीधी पटरी छोड़ वक्र पर भागें कैसे छिल जाएँगे घुटने ठोकर अगर लगी तो हमें अभी भावी घावों से

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