अपना-अपना द्वंद्व

छंद और द्वंद्व के बीच जी जा रही ज़िंदगी और अपने समय के बहुरुपिये के बीच जय श्रीवास्तव की कविताएँ सहनशीलता और संघर्ष का संबल देती हैं।

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कहीं तो सच है

बीच राह में तब... ऐसी ठोकर लगी कि मेरे पाँव से रिसते रक्त की बूँदे, रेत पर धँसती चली गई और इस रक्त की गंध उड़कर– आसमान में फैल गई तब शायद्...मैं उस आसमान को निहारना भूल गई थी

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तपती दोपहरी

व्यथा-कथा वह किसे सुनाए धूप-धूप तन तपता निशा की शीतलता पाकर यह हरसिंगार-सा झरता धीरज सहज टूट जाता जब दिशा हुई बहरी!

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इतिहास रचाने

बड़ा फासला जीने में हैफटे वस्त्र को सीने में हैकटु-मधु आसव पीने में हैसाँस-साँस में टँगी जिंदगी दुनिया में इतिहास रचाने इस जीवन में मरना पड़ता है!

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