अपना-अपना द्वंद्व
छंद और द्वंद्व के बीच जी जा रही ज़िंदगी और अपने समय के बहुरुपिये के बीच जय श्रीवास्तव की कविताएँ सहनशीलता और संघर्ष का संबल देती हैं।
छंद और द्वंद्व के बीच जी जा रही ज़िंदगी और अपने समय के बहुरुपिये के बीच जय श्रीवास्तव की कविताएँ सहनशीलता और संघर्ष का संबल देती हैं।
फिर! मैं चाहती हूँ कि– यह गान जो साक्षी है मेरा-तुम्हारा उसे बचे रहना चाहिए सदा के लिए!
बीच राह में तब... ऐसी ठोकर लगी कि मेरे पाँव से रिसते रक्त की बूँदे, रेत पर धँसती चली गई और इस रक्त की गंध उड़कर– आसमान में फैल गई तब शायद्...मैं उस आसमान को निहारना भूल गई थी
व्यथा-कथा वह किसे सुनाए धूप-धूप तन तपता निशा की शीतलता पाकर यह हरसिंगार-सा झरता धीरज सहज टूट जाता जब दिशा हुई बहरी!
सीमाहीन गगन पथ निकले थके पंख गिरने से पहले रहे अधूरे इस जीवन के सतरंगे सपने।
बड़ा फासला जीने में हैफटे वस्त्र को सीने में हैकटु-मधु आसव पीने में हैसाँस-साँस में टँगी जिंदगी दुनिया में इतिहास रचाने इस जीवन में मरना पड़ता है!