मीटर से
लाँघी है अपरिमित दूरी तुम माप नहीं सकते मीटर से।खुले गगन में तौल-तौल के फैलाये हैं डैने लेकिन अंतर रहा प्रवाहित तट तोड़े हैं कितने रही पपीहे-सी रट हरदम टूट गया भीतर से।
लाँघी है अपरिमित दूरी तुम माप नहीं सकते मीटर से।खुले गगन में तौल-तौल के फैलाये हैं डैने लेकिन अंतर रहा प्रवाहित तट तोड़े हैं कितने रही पपीहे-सी रट हरदम टूट गया भीतर से।
मुक्तिबोध ने कविता को अपने सार्थक और मौलिक प्रतीकों के द्वारा कलात्मक सौंदर्य, गहराई और सांकेतिकता प्रदान की है। मुक्तिबोध की कविताओं में वर्तमान के वैज्ञानिक एवं मौलिक तथा भूतकाल के पौराणिक प्रतीकों का भी प्रयोग पर्याप्त मात्रा में है। वस्तुतः उनके प्रतीक सुनियोजित सुव्यवस्थित सटीक होते हैं।
मैंने युवक से झल्लाकर कहा–‘यह क्या मजाक है।’ उसने मेरी तरफ देखकर कहा–‘यह हमारे अखबार के लिए एक सनसनीखेज खबर होगी...।’
‘जानता हूँ सर, आपने ही महात्मा बुद्ध का यह कोटेशन दिया था कि अपना दीपक स्वयं बनो, लेकिन मैं आपके साथ आपके घर तक तो जा ही सकता हूँ न?’ मैं उसकी ओर देखता हूँ। स्ट्रीट लाइट में उसका चेहरा बुझा हुआ है।
गजेंद्र कहते-कहते रोने लगा था और उसने पुनः कहा–‘भाई साहब! आप कुछ रास्ता निकालिए और मेरे परिवार को सुरक्षित कीजिए, जिससे मेरी आत्मा को सुकून मिल सके।’
यदि हम बुद्ध के दर्शन को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए उसमें वर्तमान परिस्थितियों से पैदा होने वाली समस्याओं का हल ढूँढ़ते हैं तो बहुजन की बात और अधिक स्पष्ट होकर सामने आती है। मिसाल के तौर पर बुद्ध ने एक हिंसक आक्रांता अँगुलीमाल को भी दीक्षा दी थी।