प्रतिध्रुव
अपने समय में ये कहानियाँ विभिन्न अखबारों में छपी थीं और वहीं दब कर रह गई। उनमें 1967 में लिखी एक ऐसी भी कहानी है, जो तब चार लेखकों ने मिलकर लिखीं थीं, जो उस समय की चर्चित पत्रिका ‘कल्पना’ में छपी थी। ‘प्रतिध्रुव’ नाम की इस कहानी को ‘नई धारा’ के पाठकों के लिए पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।