वाह रे जी

वह आलोचक है। बहुत बड़ा है। बड़ा वह इसलिए नहीं है कि वह आलोचक है। वह आलोचक बड़ा है। उसकी ऊँचाई बाँस से भी ज्यादा है, ताड़ से भी ज्यादा है। उस का फैलाव, उसका दबाव पहाड़ से भी ज्यादा है।

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यथार्थ की परतें खोलती ग़ज़लें

मधुवेश द्वारा रचित ग़ज़लों का पहला संग्रह ‘क़दम-क़दम पर चैराहे’ सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ की तहों की खोज-ख़बर लेने वाली ग़ज़लों को सामने लाता है

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केश झाड़ती लड़की

दिन तो शुरू हुए थे दिन से बदल गए चलकर आगे।समय बीत जाता फूलों के नामों को गिनने में परीकथा जैसी ही कोई निजी कथा बनने में

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बाबूजी की बातें बाबूजी की यादें

प्रेमचंद की यह उक्ति कि बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ति होती है, को मैं बाबूजी ;स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय के अंतिम दिनों में उनमें ही शब्दशः चरितार्थ होते हुए देखी हूँ।

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अन्याय के खिलाफ लड़ाई जारी है

कथाकार अनंत कुमार सिंह के उपन्यास ‘ताकि बची रहे हरियाली’ की कथा भूमि बिहार का भोजपुर अंचल है।

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मेरी पेरू यात्रा

दक्षिण अमेरिका महादेश के पेरू देश की राजधानी लीमा में मौसम परिवर्तन के नाम से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया।

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