उदय राज सिंह के उपन्यासों में स्त्री
‘उदय राज रचनावली’ नाम से चार खंडों में प्रकाशित हो चुका है। उनके उपन्यास साहित्य में अपने समकालीन समाज को बेहद करीब से देखने-परखने की दृष्टि मिलती है,
‘उदय राज रचनावली’ नाम से चार खंडों में प्रकाशित हो चुका है। उनके उपन्यास साहित्य में अपने समकालीन समाज को बेहद करीब से देखने-परखने की दृष्टि मिलती है,
अभी पिछले हफ्ते एक राज्यस्तरीय संगोष्ठी में मुझे बुलाया गया, जो वैश्वीकरण के दुष्परिणामों से प्रभावित बाल मनोविज्ञान से संबंधित था। संगोष्ठी में कई तरह के पर्चे पढ़े गए, जो विकासशील देशों के शहरी बच्चों की तंग होती दुनिया की त्रासदी से परिचित कराने वाले थे।
युनुस की उँगलियों के ऊपर सुषमा की उँगलियों की पकड़ मजबूत हो गई। ‘क्या-क्या शिकायतें की होंगी इस लड़के ने? ऊपर से यह।
वही हँसी, वही आँखें, वही हृदय और जब तुम मुझे जु...री...कहकर पुकारती हो तो मैं विस्मित हो जाती हूँ। इतनी समानता कैसे हो सकती है।
समाज में आप जैसे लोगों की ज़रूरत है, जो किसी की निंदा नहीं करते, वरना तो आप देख ही रहे हैं न दुनिया को।
तीस कोटि संतान नग्न तन, अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन, मूढ़ असभ्य, अशिक्षित, निर्धन, नत-मस्तक तरु तल निवासिनी!