ग्रीन-रूम (एक)

मुझे मिल गया है टिकटअब प्रवेश द्वार पर कोई रोकेगा नहीं सरसराते हुए चली जाऊँगीशुरू होने वाला है रंगशाला में नाटक।

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अल्लाह के रक्षक

अच्छा, अल्लाह के रक्षक हो! नहीं, अहंकार की इंतहा हो! ‘शार्ली एब्दो’ को गोलियों से भून दियातो क्या वे सभी मर गए ? नहीं

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मिट्टी के बरतन

कहाँ गए मिट्टी के बरतनअब गाँव में भी नहीं दिखते कहीं नहीं दिखतीचूल्हे पर चढ़ी हांडी न पनघट या कुएँ अथवा नल के घड़े

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वो घड़ी न आए काश

लेखकीय स्वाधीनता के लिए नौकरी या लाभ का कोई पद ग्रहण न करने का संकल्प राजेन्द्र यादव ने लेखन के प्रारंभ में ही ले लिया था। बाद में कोई पुरस्कार न लेने का संकल्प भी उसमें जुड़ गया, जिसे ईमानदारी से निभाने की कोशिश उन्होंने ताउम्र की।

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