कि आँखों में आँसू को मलना पड़ा था

कि आँखों में आँसू को मलना पड़ा था उसे जब सँवर के निकलना पड़ा था जमाने की वहशी नजर लग न जाए जरूरत का दामन बदलना पड़ा था

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पद और सम्मान

शर्मा जी हँसते-मुस्कुराते मालकिन को उनकी व्यक्तिगत सफलता पर बधाई देने अंदर गए तो वहाँ दूसरा ही भयानक दृश्य देखकर वह सन्न हो गए। मालकिन का इतने दिनों से और इतनी बंदिशों से बनाया हुआ मूड एकदम बिगड़ गया है और चौके में से चावल-दाल निकलवाकर नाली में फेंकवा रही हैं। रणचंडी का रूप धारण कर लिया है और गालियों की बौछार से गानेवालियों को भी मात कर रही हैं

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काल और कला

सत्ता तो सत्ता में समा गई, पर कला को काल की कैंची भी कतर न सकी। जो सत्य है; शिव है, सुंदर है, वह चिरंतन भी है, चिर-नवीन भी।

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शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण (दूसरी कड़ी)

मेरे दिमाग में यह बात ही नहीं आई कि इतने बड़े और प्रसिद्ध लेखक, जिनसे मेरा केवल एक दिन का परिचय है, अपने घर के भीतर बीस तरह के कामों में व्यस्त हो सकते हैं और इस विशेष क्षण में किसी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना में तल्लीन हो सकते हैं

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