“नवल नागरी नेह रत”

“मैं समझ गया कि हों न हों ये सत्यनाराण जी हैं; पर फिर भी परिचय-प्रदान के लिए पं. मुकुंदराम को इशारा कर ही रहा था कि आपने तुरंत अपना मौखिक ‘विज़िटिंग कार्ड’ हृदयहारी टोन में स्वयं पढ़ सुनाया–

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बदरीनाथ

भूतपूर्व रावल साहब बतला रहे थे कि मैंने यहाँ सूर्य की एक खंडित मूर्ति देखी थी किंतु अब वह दिखाई नहीं देती। जान पड़ता है यात्रियों के साथ पुरानी मूर्तियों के व्यापारी भी आते रहे हैं, जिनके कारण एक भी खंडित मूर्ति बचने नहीं पाई।

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आचार्य शिवपूजन सहाय

यों एकबार और भी उनके घर गया था। पर वह खास मौका था इसलिए उनके बारे में कुछ विशेष नहीं जान सका। वह बीमार भी थे। हाँ इतना समझ में आया कि वे बड़े जिद्दी हैं, गाँधी जी की तरह। इस जिद्दी शब्द पर घबराने की बात नहीं है। मामूली आदमी में यही गुण जिद्दी कहलाता है तो बड़े आदमियों में दृढ़ता। बात एक ही है। हाँ, तो वह बीमार थे और काफी सख्त बीमारी के बावजूद अपनी लड़की का ‘दान’ उन्होंने 1030 बुखार में किया। उन्हें समझाया जाता तो सिर्फ अपना निश्चय भर प्रकट करते, न कोई दलील देते, न सुनते। राम जाने क्यों!

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