ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया (रेडियो रूपक)
[तानपूरे पर दूर से आती हुई ध्वनि जो क्रमश: धीरे-धीरे पास आती है।] झीनी झीनी बीनी चदरिया। काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।
[तानपूरे पर दूर से आती हुई ध्वनि जो क्रमश: धीरे-धीरे पास आती है।] झीनी झीनी बीनी चदरिया। काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।
स्वर्गीय बालमुकुंद गुप्त हिंदी के उन नायकों में से थे जिन्होंने हिंदी-गद्य के पौधे को उस समय सींचा, जब वह बिल्कुल पौधा था। पंजाब उनकी जन्मभूमि थी; उर्दू में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी। प्रारंभ में वह उर्दू में ही लिखते थे, उर्दू पत्रों का संपादन भी किया था।