भारतीय नवजागरण और भिखारी ठाकुर
हिंदी क्षेत्र के लेखक सामाजिक कुरीतियों से भरसक आँख चुराते हैं। आर्थिक गैर-बराबरी के खिलाफ तो वामपंथी लेखक लिखते-बोलते हैं
हिंदी क्षेत्र के लेखक सामाजिक कुरीतियों से भरसक आँख चुराते हैं। आर्थिक गैर-बराबरी के खिलाफ तो वामपंथी लेखक लिखते-बोलते हैं
दो बरस कहीं निकलना, किसी से मिलना-जुलना क्या बंद हुआ, ज़िंदगी का ताप ही चला गया। सब पर बुढ़ापा आ गया। वैसे तो पार्क इत्ता सुंदर है, इत्ता बड़ा। पीछे हरे-हरे घासों का बड़ा मैदान। उतना ही घूम लें तो बहुत है।
भक्त का, शरणत्व पाकर शिवत्व में समा जाने की साधना है। यह शरण की आंतरिक साधना है। अपने तन मन की अल्पता को जीतते,
उस समय छोटी थी। समझती नहीं थी, आखिर शेक्सपियर हीरो है या रंगकर्मी। लेकिन हाँ, कानों में उनका नाम बचपन से पड़ गया था।
ये आज के संपादक का संकट है। गद्य कविता के नाम पर जो कुछ लिखा जा रहा है। वह प्रायः नीरस और अबूझ है।
जैसे सुनार पुराने आभूषण को गलाकर नया स्वर्ण आभूषण गढ़ता है और इस तरह नए और पुराने का भेद समाप्त हो जाता है।