शोध की जमीन पर लिखा गया उपन्यास

राष्ट्रीय गर्व के समानांतर यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है–‘रुई लपेटी आग’ इसी दूसरे पक्ष पर केंद्रित उपन्यास है।

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देवता का दैत्य?

मैं आज़ाद हूँ, जिसका होना खतरनाक है ‘उम्मीद’ महज़ शब्द से अधिक कुछ नहीं है चीज़ों के हो जाने से फ़र्क पड़ना ही बंद हो गया अब मेरे लिए जिया जाना भी बोझ है

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पहली भाषा

और मुझसे हर बार यही गलती हुई मैंने नई भाषा को हमेशा पुरानी भाषा से सीखने की कोशिश की इस्तेमाल किया पुरानी भाषा के व्याकरण को नई भाषा में और वक्त के साथ या तो भाषा ने मुझे या मैंने भाषा को अधूरा छोड़ दिया।

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नई धारा संवाद : उपन्यासकार ममता कालिया

मैंने रवि से कहा, ‘रवि ये बताओ, ये भारत सरकार नहाने आई है, तुम इस जुमले के ऊपर कहानी लिखोगे।’

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चक्र

प्रेमिकाएँ, करती हैं मदद पूर्व-प्रेयसियों को भुला देने में और फिर चली जाती हैं एक नई स्त्री के माथे ये जिम्मा सौंपकर प्रेमी, उद्विग्न हो जाते हैं पूर्व-प्रेमी के सिर्फ़ नाम ही से

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कवि

मैं कवि हूँ मेरी अपनी मज़बूरी है मैं ‘पसंद’ को ‘पसंद’ नहीं लिख सकता मैं ‘प्यार’ को ‘प्यार’ नहीं लिख सकता मुझे ‘प्यार’ लिखने के लिए खोजने पड़ते हैं नए नए शब्द गढ़नी पड़ती हैं नई नई परिभाषाएँ

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