स्वप्न

सो जाने पर भी खिलौने खेलते हैं नींद के भीतर, कुछ जागते हुए भी नहीं। टूट जाते कुछ खेलते हुए सिमट जाते हैं कुछ, बिखरे हुए खिलौने... Image: Puppet theater…

और जानेस्वप्न

श्यौराज सिंह बेचैन दलित दृष्टि के कहानीकार

समय के अनुसार कहानियाँ भी बदलती हैं और कहानी के पात्र भी बदलते हैं। कहानी की सार्थकता भी यही है। हर युग के भीतर संघर्ष की नई दिशाएँ, अनुभव का नया शेड, नया भाष्य भी होता है।

और जानेश्यौराज सिंह बेचैन दलित दृष्टि के कहानीकार