बदशक्ल लड़कियाँ

मन में आशाओं का हरा जंगल उगाये बदशक्ल लड़कियाँ सोचती हैं एक-न-एक दिन जरूर चमकेगा दुनिया की आँखों में आत्मा को दिखाने वाला आईने की तरह

और जानेबदशक्ल लड़कियाँ

वे दोनों लड़कियाँ

साथ-साथ रहती हैं वे दोनों लड़कियाँ दो विपरीत घरानों में पैदा होकर भी एक मालकिन दूसरी नौकरानी की दोनों पढ़ती हैं साथ-साथ एक ही क्लास में दोनों का सोच एक, चिंतन एक दोनों मेधावी, व्यवहार-कुशल

और जानेवे दोनों लड़कियाँ

साहित्य का समाजशास्त्र

उड़िया-बंगला के लेखकों को किसी क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के गढ़ने-रचने की प्रेरणा पर्ल बक से मिली, ऐसा माना जाता है। उन्नीसवीं शती के आरंभ में अँग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी आदि भाषाओं के लेखक अपने-अपने क्षेत्र के देशकाल का सामाजिक-सांस्कृतिक आख्यान प्रस्तुत कर रहे थे।

और जानेसाहित्य का समाजशास्त्र

जिसे चाहता हूँ भाषा में

मैं हूँ और तुम भी मेघ हैं और समंदर भी पहाड़ है और समतल भी... होगी तो जरूर कहीं न कहीं ऐसी भाषा भी जिसमें रोना चाहता हूँ मनुष्य की तरह मनचाही देर तक।

और जानेजिसे चाहता हूँ भाषा में

शांतिः शांतिः शांतिः

कैसे हैं ये जख्म इन कविताओं के जो बहुत ऊँचा उठ नफरतों से, द्वेषों से उठाए हाथ बस कर रहे हैं पाठ... शांतिः शांतिः शांतिः ।

और जानेशांतिः शांतिः शांतिः

स्त्री सृजन की आवाँ है

‘तुम्हें गलत साबित करना है उन सबको जो कहते हैं कि धीमी-धीमी आँच में ही लड़कियाँ सीझ जाती हैं तेज आँच की गंध उन्हें पसंद नहीं।’

और जानेस्त्री सृजन की आवाँ है