हास्य-व्यंग्य जगत में कोश की भूमिका

यह पुस्तक हिंदी हास्य-व्यंग्य क्षेत्र को सुगठित करने का विचारपरक प्रयास है। एक विस्तृत विषयफलक को समेटते हुए भी कोश निर्माण के मूलभूत सिद्धांतों का पूर्ण रूप से तिवारी जी ने अनुसरण किया है। प्रत्येक अध्याय में लेखक या कृति के आद्याक्षर के रूप में सूची का निर्माण किया गया है। क्रम संख्या, पृष्ठ संख्या, प्रकाशन काल, प्रकाशन केंद्र, विधा आदि पर पूरी सावधानी के साथ कार्य संपन्न किया गया है।

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अपना-अपना द्वंद्व

छंद और द्वंद्व के बीच जी जा रही ज़िंदगी और अपने समय के बहुरुपिये के बीच जय श्रीवास्तव की कविताएँ सहनशीलता और संघर्ष का संबल देती हैं।

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कहीं तो सच है

बीच राह में तब... ऐसी ठोकर लगी कि मेरे पाँव से रिसते रक्त की बूँदे, रेत पर धँसती चली गई और इस रक्त की गंध उड़कर– आसमान में फैल गई तब शायद्...मैं उस आसमान को निहारना भूल गई थी

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तपती दोपहरी

व्यथा-कथा वह किसे सुनाए धूप-धूप तन तपता निशा की शीतलता पाकर यह हरसिंगार-सा झरता धीरज सहज टूट जाता जब दिशा हुई बहरी!

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